श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन हरणभवभयदारुणं । नवकञ्जलोचन कञ्जमुख करकञ्ज पदकञ्जारुणं ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनीलनीरदसुन्दरं । पटपीतमानहु तडित रूचिशुचि नौमिजनकसुतावरं ॥२॥
व्याख्या: हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर । वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले हैं । उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं । मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥
उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है । उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है । पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है । ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥
🚩🚩जय श्री राम🚩🚩
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