दीवाली या दीपावली अर्थात
"रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने
वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और
प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर
प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले
सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व
है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा
ज्योतिर्गमय’
अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग
इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख
समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस (en:Bandi Chhor Divas) के रूप में मनाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों
का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में
अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा
उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता
है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई
सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में
मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़
सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है।
दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार
सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
दीपावली नेपाल और भारत में सबसे
सुखद छुट्टियों में से एक है। लोग अपने घरों को साफ कर उन्हें उत्सव के लिए सजाते
हैं। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।
दीपावली नेपाल और भारत में सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक
है; इस दौरान लोग कारें और सोने के गहनों
के रूप में भी महंगे आइटम तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरणों, रसोई के बर्तन आदि खरीदते हैं। लोगों अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को उपहार स्वरुप आम
तौर पर मिठाइयाँ व सूखे मेवे देते हैं। इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से
अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों
के बारे में सुनते हैं। इस दौरान लड़कियाँ और महिलाऐं खरीदारी के लिए जाती हैं और
फर्श, दरवाजे के पास और रास्तों पर रंगोली
और अन्य रचनात्मक पैटर्न बनाती हैं। युवा और वयस्क आतिशबाजी और प्रकाश व्यवस्था
में एक दूसरे की सहायता करते हैं।
क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाजों में बदलाव पाया
जाता है। धन और समृद्धि की देवी - लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती
है। दीवाली की रात को, आतिशबाजी
आसमान को रोशन कर देती है। बाद में, परिवार
के सदस्यों और आमंत्रित दोस्त भोजन और मिठायों के साथ रात को मनाते हैं।
दीपावली का आर्थिक महत्त्व
दीवाली
का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और
आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम
में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी खरीददारी का समय है। इस त्योहार पर खर्च
और खरीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली
भारत में सोने और गहने की खरीद का सबसे बड़ा सीजन है। मिठाई, कैंडी और आतिशबाजी की खरीद भी इस दौरान अपने चरम सीमा पर रहती है।
प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों अदि की खपत होती
है।
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