history of jait navratri - Kaal chakra

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history of jait navratri

               
history of jait navratri
         
भारतीय नववर्ष 
भारतीय नववर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को मनाया जाता है। यह वसन्त ऋतु में पडता है। जिस प्रकार जीवन के प्रारम्भ में मधुरता, सौन्दर्यता और आकर्षण रहता है, उसी प्रकार नववर्ष के प्रारम्भ में भी पर्यावरण में सौन्दर्य की वृद्धि होती है, वृक्षों पर नए पत्ते आ जाते हैं, वसुन्धरा पर हरियाली छा जाती है, न अधिक गरमी होती है, न अधिक ठण्ड लगती है, न अधिक वर्षा होती है, यह ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ ऋतु वसन्त का काल है।
ज्योतिष के ग्रन्थ हिमाद्रि के एक श्लोक के अनुसार,
चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि। शुक्ल पक्षे समग्रन्तु तदा सूर्योदये सति।।
अर्थात् चैत्र शुक्ल के प्रथम दिन सूर्योदय के समय परमात्मा ने जगत् की रचना की।

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य भास्कर सिद्धान्त-शिरोमणि में लिखते हैं:


लङ्कानगर्यामुदयाच्च भानोतस्यैव वारं प्रथमं बभूव। मधो:सितादेर्दिनमासवर्षयुगादिकानां युगपत्वृत्तिः।।


अर्थात् लङ्कानगरी में सूर्य के उदय होने पर उसी के वार (रविवार), में चैत्रमास शुक्लपक्ष के आरम्भ में दिन, मास, वर्ष, युग आदि एक साथ आरम्भ हुए

चैत्रशुक्लप्रतिपदा (भारतीय नववर्ष) को क्या-क्या घटनायें हुई???
१) आज के दिन ही 1,97,38,13,117 वर्ष पूर्व जगत् की उत्पत्ति (World Creation) हुई। अतः आज से सृष्टि-सम्वत् 1,97,38,13,118वाँ वर्ष
२) जगत् की उत्पत्ति के तीन चतुर्युग के पश्चात् आज के दिन ही 1,96,08,53,117 वर्ष पूर्व तिब्बत के मानसरोवर में सैकड़ों मनुष्यों (स्त्रियों-पुरुषों) की युवावस्था में अमैथुनी सृष्टि (Human Creation) हुई। अतः आज से मानव-सम्वत् 1,96,08,53,118वाँ वर्ष
मनुष्योत्पत्ति में दो प्रकार के मनुष्यों की उत्पत्ति हुई, १) ऋषि २) साध्य
जो ऋषि थे वह “ भवप्रत्यय।।।” (योगदर्शन १।१९) के अनुसार, आरम्भ से ही समाधिस्थ हो गए, जो “उपाय प्रत्यय” वाले साध्य (साधारण मनुष्य) थे, वे साधारण क्रियाकलाप करते हुए विचरण करने लगे। मनुष्योत्पत्ति के 5 वर्ष के भीतर चारों ऋषियों को शब्द, अर्थ, सम्बन्ध सहित चारों वेदों का ज्ञान उनके अन्तःकरण में परमात्मा ने दिया। 5 वर्षों में जब २०००० से अधिक मन्त्रों की शिक्षा समाधि अवस्था में पूर्ण हुई, तब वेदों का आविर्भाव (Illumination of VEDAS) होना कहा गया।
३) मनुष्य-उत्पत्ति के 5 वर्ष पश्चात् आज ही के दिन 1,96,08,53,112 वर्ष पूर्व वेदों का आविर्भाव हुआ। अतः आज से वेद-सम्वत् 1,96,08,53,113वाँ वर्ष
४) इसी दिन वैवस्वत-मन्वन्तर का प्रारम्भ (12,05,33,117 वर्ष पूर्व), कलियुग का प्रारम्भ (5,117 वर्ष पूर्व) हुआ था। अतः कलियुग सम्वत् 5118वाँ वर्ष यूरोपीय ज्योतिष Bailey की गणना के अनुसार, 5119 वर्ष।
४) चक्रवर्त्ती सम्राट श्रीराम का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था।
५) श्रीयुधिष्ठिर का राज्याभिषेक (5153 वर्ष पूर्व) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हुआ था।
६) सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन संगठित राष्ट्र को स्थापित किया, और ईसामसीह (Jesus Christ) से 57 वर्ष पहले विक्रम-सम्वत् का प्रारम्भ हुआ।
७) सिखों के दूसरे गुरु अंगददेव का जन्म आज के दिन ही हुआ था।
८) ऋषि दयानन्द सरस्वती के मार्गदर्शन में, आर्य समाज संस्था का Registration 7-मार्च-1875 को, शिलान्यास 7-अप्रैल-1875 (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) को, और आर्य समाज परिसर में प्रथम सत्संग 10-अप्रैल-1875 को हुआ।
९) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक श्री केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म भी आज के दिन ही हुआ था।


 औरंगजेब अपने ज्येष्ठ पुत्र मोअज्जम के नाम एक पत्र लिखा था:
ईरोज ऐयाद मजूसअस्त व एकाद-कफ्फारह-नूद रोज़-ए-जलूस विक्रमाजीत लाईन व मबदाए तारीख-ए-हिन्द
अर्थात् यह दिन (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) अग्निपूजकों (पारसी) का पर्व है, और काफ़िर (हिन्दुओं) के विश्वासानुसार, विक्रमादित्य के राज्याभिषेक की तिथि है और भारतवर्ष का नवसंवत्सर दिवस है।
2000 वर्ष पूर्व सम्पूर्ण विश्व में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही नववर्ष मनाया जाता था, और प्राचीन यूरोपवासी भी मार्च-अप्रैल में ही (Spring Equinox) के आसपास ही नववर्ष मनाते थे, किन्तु Pope Gregory, Julius Ceaser आदि ने इस परम्परा को ध्वस्त करके वसन्त ऋतु में मनाये जाने वाले नववर्ष को पतझड (शिशिर ऋतु) में मनाना आरम्भ कर दिया, और 1 अप्रैल को नववर्ष मनाने वाले यूरोपीय नागरिकों को APRIL FOOL घोषित किया।